कलयुग में दुश्मन है सारा जग सच्चाई का
ठोके ताल उडाये खिल्ली ईमान की सफाई का
बेईमानो के सौ यार बने मिलकर बुनते जाल
इमानदारों का एक भरोसा खुदा की खुदाई का
ऊपर से सुन्दर मन के काले मिलते अक्सर लोग
मुस्किल हुआ परख मन मंदिर की गहराई का
पापी इतने अब जैसे मधुमक्खी का छत्ता
फूंक कर उठे कदम जैसे हुआ अंत भलाई का
दुनिया के इस भीड़ में कदम कदम पे खतरा है
हुई मुश्किल पहचान, पाखंड और अय्यारी का
पर दुनिया चाहे जो समझे और करे "रियाज़"
इतना तो तय है के होता बुरा अंत बुराई का
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