बह जाने दे सारा लहू दम निकलने के लिए
हो जाए मेरी जान फ़ना अब इस घडी
रुक जाने दे सफ़र में अब संभलने के लिए
हो चुकी सायेद तेरी दास्ताँ अब ख़तम
कह लेने दे अब मेरे दिल को बहलने के लिए
मिट चुकी सारी काएनात से खुशियाँ मेरी
रूह को ही साथ हो लेने दो , दो घडी के लिए
वसल-ए-यार तो ख्वाब बन के रह गया
रूह से रूह मिलने दो रात ढलने के लिए
कहते है मुहब्बत पाने का ही नहीं नाम सिर्फ
जान हाजिर है तुम पे कुर्बान होने के लिए
No comments:
Post a Comment