Friday, December 7, 2012

कल फिर तेरा अक्स देखा मैने एक हसीना में
दिल की बात जुबान पे आ गई पहले की तरहा 

जब आँख खुली तो तेरी परछाई मिली उस नाजनीना में 
तुम क्या बिछरे,

दिल दस्तक दे रहा है दिल पे 
तुम जैसी एक हसीना के 

ऐसा लगता है वो तुम ही हो, 
बस तुम, 

जरा बताओ ! क्या तुम फिर मिलोगी 
परछाई बनकर उस नाजनीना में ?


गुलाब की पंखुरियो जैसी तेरी होंटो की लाली
तेरे दो नैनो में लिपटा बन के काजल काली

तू जिधर देखे मै उधर मिलू
जैसे बगिया में माली

तू सुन्दरता की मूरत है,
जिसके तन मन में प्यार है खाली

तेरी जुल्फों में लिपटकर,
मांगू  तुमसे खुशाहाल़ी

आ तुझको मई सैर करा दू
जरा दिखा दू जन्नत की हरियाली


चमकते चाँद को देखा था
जो कहीं गूम हो गया है

कुसूर मेरी आँखों का है
जो तेरा अक्स ढू न्ढ रहा है

चाँद तो चाँद है तेरा अक्स हो नहीं सकता
ये जालिम दिल ही ऐसा है

जिसे तेरा अक्स कही और दिख गया है
जिसमे तेरा अक्स दिख रहा है

उसका दिल एक तितली की तरह है
जिसका ठिकाना बार बार बदल रहा है

क्योकि ये उसकी फितरत में शामिल हो गया है
तू कभी ऐसी न थी,
जाने तेरे दिल आलम ऐसा क्यों हो गया है