Saturday, March 12, 2011

रूबरू


मेरे दिल में क्या है जरा सुन तो लीजिये
इक बार ही सही अब जरा मौका तो दीजिये

रूबरू न सही ख्यालों में मिल तो लीजिये
कुछ और न सही जरा ये करम तो कीजिये

फूल खिल जायेंगे हर सू इस वीराने में भी
निगाहों से ही सही जरा जहमत  तो कीजिये

कुछ कहिये और कुछ मेरी सुन तो लीजिये
गिले सिक्वों के लिए  जरा मुआफी  तो दीजिये

नशा सराब से कम इन आँखों में तो नहीं
कुछ मुझको पिलाईये  कुछ खुद तो पीजिये




Sunday, January 30, 2011

दरवाज़ा खुला हुआ है


ठोकर लगे तो आना दरवाज़ा खुला हुआ है
आकर फिर न जाना दिल रौशन किया हुआ है

जालिम है यह ज़माना और तुम हो बेखबर
रास्ता बड़ा कठिन है पहरा लगा हुआ है

दिल तेरा कोई दुखाये तो मुझको याद करना
छुपाने को दिल में एक कोना  बचा हुआ है

तेरी नासमझी ने ही मुझको बड़ा रुलाया
आंसू से मेरा दामन अबभी भरा हुआ है

तेरे खोने का गम तो है ही पर कभी
कोई जालिम न सताए डर इसका बना हुआ है 

सितमगर


सितम पे सितम वो किये जा रहे हैं
चुपके से सितम हम सहे जा रहे हैं

कभी तो ख़तम होंगे सितम सारे उनके
यही सोंच के अश्क पिए जा रहे हैं

दिल ही दिल में ग़मों को छुपाये हुए
गम नए दिल पे हम लिए जा रहे हैं

फूल न मिल सके तो न ही सही
ग़मों से ही दामन हम भरे जा  रहे है

काँटों भरे दामन में फूल खिलेंगे कभी
इसी एक उम्मीद पे हम जिए जा रहे हैं

ख्वाबों में ही सही मिल रहे हैं वो मुझसे
हौसला मिलन का वो दिए जा रहे हैं

सिक्वे हम करेंगे कभी तो सितमगर से
के चिरागों को रौशन हम किये जा रहे है 

अजनबी


इस शहर में हर सख्स अजीब लगता है
बेगाने तो हैं गैर अपना अजीब लगता है

दिल के करीब रहकर वो रहते है दूर दूर
उनकी बेरुखी ही अब अपना नसीब लगता है

गैरों का क्या कहिये अपनों ने किया छल
वोह सितमगर क्यों अपना हबीब  लगता है

उसके लबों पे नाम मेरा आता है बार बार 
पर उसका इनकार करना कितना अजीब लगता है 


 

न शिकवे न शिकायत

जान हथेली पे


इससे पहले की तू मेरी हकीकत समझे
बह जाने दे सारा लहू दम निकलने के लिए

हो जाए मेरी  जान फ़ना अब  इस घडी
रुक जाने दे सफ़र में अब संभलने के लिए 

हो चुकी सायेद तेरी दास्ताँ अब ख़तम 
कह लेने दे अब मेरे दिल को बहलने के लिए 

मिट चुकी सारी काएनात से खुशियाँ मेरी 
रूह को ही साथ हो लेने दो , दो घडी के लिए

वसल-ए-यार तो ख्वाब बन के रह गया 
रूह से रूह मिलने दो रात ढलने के लिए 

कहते है मुहब्बत पाने का ही नहीं नाम सिर्फ 
जान हाजिर है तुम पे कुर्बान होने के लिए 


 

Thursday, January 27, 2011

तेरे रुखसार पे


तेरे रुखसार पे नजर पड़ी तो गुलज़ार हो गया
पता भी न चला के जाने कब प्यार हो गया

पर एक तेरी निगाह को जैसे राह ताकता है दिल
मेरा दिल आँखे चार करने को तेयार हो गया

वो मेरी जाने जहाँ मान भी जावो जरा तुम
तेरे सुंदर लबों की दिल को दरकार हो गया

मैंने अबतक जो बात दिल में छुपाई तुमसे
वो इजहार करने का वक़्त अब सरकार हो गया

जाने क्या किया तेरी जुल्फों ने मुझपे जादू
जैसे एक ही नजर में तू मेरा दिलदार हो गया



तस्वीर-ए-ख्वाब


तू हसीनो में हसीं महजबीं और रंगीन हो
देखने पे बार बार तू लगाती और  हसींहो

ला लालालला ला लालालला ..................

चेहरा तो चंदा जैसी आंखे बेहतरीन हैं
होंट गुलाब की पंखुरियाँ लगती बड़ी नमकीन है 

तू हसीनो में हसीं महजबीं और रंगीन हो

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मुस्कुराते तो सभी हैं इस जमाने में
आप की मुस्कराहट सबों में हसीं हैं

तेरी मुस्कुराहटों से प्यार किया है
तुम्ही बताओ क्या जुर्म कोई संगीन है ?

तू हसीनो में हसीं महजबीं और रंगीन हो
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तुझे देखकर मेरी जाना कश्मीर की कलि ग़मगीन है
सहेली के बिच मुस्कुराती हुई तू लगाती और हसीं है

ला लल्ला लालालला ............................

सनम तेरी वफ़ा तो काबिले बयां है
मुझे तो तेरी वफ़ा पे बहूत यकीन है

हु हूहू हु हूहू ............................

देखना, मुस्कुरान, सर झुकाना ये अदाएं तेरी तिन है
पर हँसना, हसाना, रुठ्जाना ये अदाएं  और भी हसीं हैं

तू हसीनो में हसीं महजबीं और रंगीन हो
.........................................................

तेरी यादें


चाहा है तुम्हे हरदम चाहेंगे हमेशा
देखा है तुम्हे हरदम अजीजों की तरहा 


तुम महकती हो हमेशा हर चमन में
पाया है तुम्हे हरजगह नाजनीनो की तरहा


एक दिन तुम्हे मांग ही लूँगा तुम्ही से यारा
न दगा देना तुमभी उन हसीनो  की तरहा


न भूलूंगा तेरा चेहरा बसा के दिल में
रखा है रखूँगा हमेशा अमीरों  की तरहा


तेरी हर याद को संजोया है मैंने अब तक
ये बसी है मनमंदिर में नगीनों  की तरहा

दिल-इ-नादाँ


एक ही घर बहूत है दिल तेरे रहने  के लिए
दिल-इ-नादाँ कई घर न बना ठहरने के लिए
प्यार कर सिर्फ एक ही से खुस रहने के लिए
एक जाम मुहब्बत का काफी है बहकने के लिए
तेरे ही इश्क का कायल है यह मेरा दिल
और दूजा घर न चाहिए इसे रहने के लिए
एक तेरे सपने ने दिखाया जन्नत का नजारा
दूजा सपना न चाहिए इसे  बहलने के लिए
कांपे है ये मन तेरे बिछड़ने के खौफ से
एक तेरा साथ बहुत है दिल को धरकने के लिए
तेरे आस पे ही टिकी है जिंदगानी मेरी
इसे ऐसे छोर के न जा तड़पने के लिए

एक नजर


अभी जिंदगी ने ली करवट जो तुमसे आ मिला
है जमाने की एक खुसी जो तुम से मिली है

ग़मों को भुलाने का एक सहारा ही सही
टूटे हुए दिल को हंसी अब तुम से मिली है

उस संगदिल ने जो खुसी न दी अब तक मुझे
इस दिल को एक खुसी भी तुमसे मिली है

जिस घडी से पड़ी है तुमपे नजर अपनी
इस दिल को जीने की अदा भी तुमसे मिली है

Thursday, January 20, 2011

बुरा अंत बुराई का



कलयुग में दुश्मन  है सारा जग सच्चाई  का
ठोके ताल उडाये खिल्ली ईमान की सफाई का

बेईमानो के सौ यार बने मिलकर बुनते जाल
इमानदारों का एक भरोसा खुदा  की खुदाई का

ऊपर से सुन्दर मन के काले मिलते अक्सर लोग
मुस्किल हुआ परख मन मंदिर की गहराई का

पापी इतने अब जैसे मधुमक्खी का छत्ता
फूंक कर उठे कदम जैसे हुआ अंत भलाई का

दुनिया के इस भीड़ में कदम कदम पे खतरा है
हुई मुश्किल पहचान, पाखंड  और अय्यारी का

पर दुनिया चाहे जो समझे और करे "रियाज़"
इतना तो तय है के होता बुरा अंत बुराई का