Monday, October 25, 2010

हम और तुम


चाँद सितारे सबके दुलारे
धीरे धीरे दिल ये पुकारे

आ तुझको आँखों में बसा लूँ
तुझको मैं पहचान बना लूँ

चम् चम्-2 चंदा चमके
झिलमिल झिलमिल सारे तारे

सबके घर में रोज तुम आते
सबसे सुन्दर नयन तुम्हारे

नीले गगन पे तुम हो बैठे
तारे हैं सब फौज तुम्हारे

चांदनी रात का क्या कहना
बैठे हो तुम पंख पसारे

Sunday, October 24, 2010

क्या बेटा क्या बेटी ?



सरहद पे भी खड़ी है वो
मैदान में भी लड़ी है वो

फिर क्या बेटा क्या बेटी ?

इस दुनियां की रौनक है वो
हर घर की जननी है वो

फिर क्या बेटा क्या बेटी ?

जो भी इस धरती पे जन्म लिया
माँ की आँचल में खेला है वो

फिर क्या बेटा क्या बेटी ?

आवो मिलकर गुणगान करें हम
क्योंकि सबका तारनहार है वो

फिर क्या बेटा क्या बेटी ?

इंदिराजी, कभी मदर टेरेसा
लक्छमी बाई भी रही है वो

फिर क्या बेटा क्या बेटी ?

Friday, October 22, 2010

तू ही एक दाता


 गर बैठे बिठाये ही खाने को मिल जाये
तो फिर उस  खाने का मजा क्या है

वो हर ख़ुशी  गर ऐसे ही मिल जाये
तो वो जीवन, जीवन ही भला क्या है ?

लुत्फ़-इ-जिंदगी लम्हों में समझ आ जाती
तो बर्षों तलक जीने का मजा क्या है ?

मेहनत की रोटी में जो मजा मिल जाये 
यूँ ही  बैठे बैठे ही  खाने में भला क्या है

मंग्तें  तो उस रब के हैं ही हम सब
बिन मांगे ही मिला हो तो मजा क्या है

मंजिल का पता गर लाख तुम्हे हो जाये
बिन किनारे उस पार जाने का मजा क्या है

Wednesday, October 20, 2010

जिंदगी और मौत


वो जिंदगी-जिंदगी कैसी जो किसी के काम न आये 
वो मौत- मौत कैसी है जो यू ही व्यर्थ चली जाए 

प्यार सिर्फ पा लेने का नाम नहीं है यारों 
वो प्यार-प्यार कैसा है जो बेजान होती चली जाए 

जिंदगी दे नहीं सकते तो लेना कोई काम नहीं यारो


जीने के लिए इस दुनिया में सभी, कुछ कर्म करते है 
वो कर्म- कर्म कैसा है जिससे अनर्थ होती चले जाए 


जिंदगी को हर कोई अपने तौर पे जी लेता है यारो 
वो उम्र- उम्र कैसी है जो बिन इबादत ही ढलती जाए 


मुहब्बत एक  इबादत है  कुछ और न समझो यारो 
वो सम्मा-सम्मा  कैसी है जो बुझती ही चली जाए

सिर्फ एक वोही सबकुछ


गर न होता मैं तो भी खुदा होता 
गर न होते तुम तो भी खुदा होता 

खुदा ने भेजा हमें इस चमन में 
जहाँ जर्रे जर्रे में वो समाया हुआ है 

गर न होती यहाँ रौनक तो क्यों फूल होता 
गर न होती लज्जत जीने में तो क्यों  जीवन होता 

गर न होता मैं तो भी खुदा होता 
गर न होते तुम तो भी खुदा होता 


करम है जो उसने हमें तो इंसान बना दिया 
न चाहा होता सो जाने क्या बनाया होता 

हम तुम न होते तो कोई गम न होता 
गर खुदा न होता तो कुछ भी न होता 

गर न होता मैं तो भी खुदा होता 
गर न होते तुम तो भी खुदा होता 



 

राही




जिंदगी तुझसे बीछर के मुझे किधर जाना है
तेरे संग ही रहा हूँ तेरे संग ही रहना है 

हम हैं तुम भी हो सब हैं एक राह के मुसाफिर 
जिस हाल में रहे हम सबको चलते ही जाना है 


 मुसाफिर ,उस डगर पे मिलो फिर इत्तफाकन 
जहाँ पे हम  मिले थे वहीँ कदमो को ठहरना है


जिंदगी तुझसे बीछर के मुझे किधर जाना है
तेरे संग ही रहा हूँ  और तेरे संग ही रहना है 



क्यों करता अभिमान ?


हे मानव क्यों करता इतना अभिमान 
हे मानव क्यों रखता आन और बाण 

छंभंगुर जीवन तो इश्वर का है वरदान 
कर सके तो कर इसका मान और सम्मान

पंख पखेरू उर जानी है क्यों है तू अनजान 
धरी की धरी रह जानी है अहंकार और अभिमान

हे मानव क्यों करता इतना अभिमान 
हे मानव क्यों रखता आन और बाण

 कर मानव का सम्मान पर का न कर अपमान 
सब को जाना है एक दिन हो चाहे दीन और धनवान 

खुद को खुश रखकर तू करना औरो का कल्याण 
कर सके तो करले भय्या कुछ दान और गुणगान 

हे मानव क्यों करता इतना अभिमान 
हे मानव क्यों रखता आन और बाण

 जैसा करोगे वैसा भरोगे कहती गीता और कुरआन 
राजा  रंक तो कालचक्र है जरा जान और पहचान 



 
 

अनमोल जीवन


            ये जीवन तो है अनमोल साथियों 
करना है  बड़ा कुछ  काम हमें

            यह समय तो है अनमोल साथियों 
इसका दामन लेना है थाम हमें 

ईश्वर ने दिया अनमोल ये जीवन 
न बनाना है इसे नाकाम हमें 

न घबरान दुःख संकट से कभी 
उसका करना है बखान हमें 

छंट जाए दुःख के बादल जब भी 
तब छू लेना है आसमान हमें 


Tuesday, October 12, 2010

हम हिन्दुस्तानी


हम हिन्दुस्तानी खून खून का रिश्ता अपना 
हम देखा करते मिलजुलकर एक सच्चा सपना 

देश भक्त भगत सिंह जैसा है मंसाअपना 
आग बढ़ते रहने का इरादाअच्च्छाअपना 

हम हिन्दुस्तानी खून खून का रिश्ता अपना 
हम देखा करते मिलजुलकर एक सच्चा सपना

सींचा भारत को इंदिराजी ने लहू से अपना 
गाँधी जी का मंत्र हमें है आता जपना 

आतंकवाद कुचलने को हमने है ठाना 
जिस धरती पे स्वर्ग मिले वो देश है अपना 

हम हिन्दुस्तानी खून खून का रिश्ता अपना 
हम देखा करते मिलजुलकर एक सच्चा सपना

मंदिर मस्जिद के नाम पे लहू नहीं बहाना 
पायी आजादी मुश्किल से फिर से नहीं गवाना 


जात पात का ढोंग मिटाकर मंजिल हमको है पाना 
उस युग में जीते है हम जो है नया ज़माना