Wednesday, October 20, 2010

क्यों करता अभिमान ?


हे मानव क्यों करता इतना अभिमान 
हे मानव क्यों रखता आन और बाण 

छंभंगुर जीवन तो इश्वर का है वरदान 
कर सके तो कर इसका मान और सम्मान

पंख पखेरू उर जानी है क्यों है तू अनजान 
धरी की धरी रह जानी है अहंकार और अभिमान

हे मानव क्यों करता इतना अभिमान 
हे मानव क्यों रखता आन और बाण

 कर मानव का सम्मान पर का न कर अपमान 
सब को जाना है एक दिन हो चाहे दीन और धनवान 

खुद को खुश रखकर तू करना औरो का कल्याण 
कर सके तो करले भय्या कुछ दान और गुणगान 

हे मानव क्यों करता इतना अभिमान 
हे मानव क्यों रखता आन और बाण

 जैसा करोगे वैसा भरोगे कहती गीता और कुरआन 
राजा  रंक तो कालचक्र है जरा जान और पहचान 



 
 

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