गर बैठे बिठाये ही खाने को मिल जाये
तो फिर उस खाने का मजा क्या है
वो हर ख़ुशी गर ऐसे ही मिल जाये
तो वो जीवन, जीवन ही भला क्या है ?
लुत्फ़-इ-जिंदगी लम्हों में समझ आ जाती
तो बर्षों तलक जीने का मजा क्या है ?
मेहनत की रोटी में जो मजा मिल जाये
यूँ ही बैठे बैठे ही खाने में भला क्या है
मंग्तें तो उस रब के हैं ही हम सब
बिन मांगे ही मिला हो तो मजा क्या है
मंजिल का पता गर लाख तुम्हे हो जाये
बिन किनारे उस पार जाने का मजा क्या है
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