अजनबी
इस शहर में हर सख्स अजीब लगता है
बेगाने तो हैं गैर अपना अजीब लगता है
दिल के करीब रहकर वो रहते है दूर दूर
उनकी बेरुखी ही अब अपना नसीब लगता है
गैरों का क्या कहिये अपनों ने किया छल
वोह सितमगर क्यों अपना हबीब लगता है
उसके लबों पे नाम मेरा आता है बार बार
पर उसका इनकार करना कितना अजीब लगता है
No comments:
Post a Comment